निचली कोर्ट में जजों की कमी, अपना भवन और बुनियादी सुविधाएं भी नहीं, इनकी आवाज उठाएगा भास्कर

ये खबर कोर्ट के गलियारों में रुके हुए एक फैसले की है...मगर ये फैसला किसी आदमी का नहीं, पूरी न्याय व्यवस्था का है। दूसरों को न्याय देने की जिम्मेदारी उठाने वाले न्यायालय खुद ही बदहाल हैं। जिस राज्य में हाईकोर्ट का भवन अपनी भव्यता के लिए पूरे देश में चर्चित हुआ हो, वहां की निचली अदालतें मुंबई की किसी चॉल जैसी हालत में हैं। पूरे राज्य में 44 अदालतें आज भी किराये के कमरों में चल रही हैं। इनमें से 20 तो जोधपुर में ही हैं। कहने को तो 330 कोर्ट कॉम्प्लेक्स हैं, मगर इनमें से 312 को नए भवनों की जरूरत है।


विडंबना ये है कि खुद न्यायालयों की इस पीड़ा को जानने के बावजूद अब तक न्याय व्यवस्था इंसाफ नहीं कर पाई है। जोधपुर हाईकोर्ट में 16 फरवरी, 2018 को राजगढ़ बार एसोसिएशन की ओर से दायर एक याचिका पर हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस की बेंच ने 9 जुलाई, 2019 को पूरे राज्य की अदालतों को भवन, सुरक्षा और बुनियादी सुविधाएं देने के निर्देश भी दे दिए। मगर अब तक ये मामला कोर्ट की तारीखों में ही उलझा है। फरवरी, 2018 से दिसंबर 2019 तक इस मामले में 17 तारीखें पड़ चुकी हैं, मगर अब तक कोर्ट की बुनियादी सुविधाओं के मानक तय करने के लिए कमेटी का गठन ही नहीं हो पाया है।


जोधपुर हाईकोर्ट के अलावा सुप्रीम कोर्ट में भी निचली अदालतों की बदहाली को लेकर दो याचिकाएं विचाराधीन हैं। राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में अंडरटेकिंग भी दे चुकी है कि सभी अदालतों के लिए अपने भवन उपलब्ध कराएगी, लेकिन इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। भास्कर इस सीरीज के तहत राज्य की निचली अदालतों की वो तस्वीर पेश कर रहा है जो अब तक सिर्फ केस फाइलों में ही दर्ज है।


एक तस्वीर, चार कोर्टरूम



  • तस्वीर में दिख रहे घर में एसीजेएम, सीबीआई, एसीजेएम-आर्थिक अपराध, एसीजेएम-4, एसीजेएम-पीसीपीएनडीटी और एनआई एक्ट की 6 कोर्ट लगती है। 

  • एक कोर्ट-रूम के भीतर दूसरे कमरे में किशोर न्याय बोर्ड का ऑफिस भी है। यहां का नजारा ठीक वैसा ही जैसा मुंबई की चाॅल में दिखाई देता है। 

  • भीतर घुसते ही वकील अपनी बाइक को ही कुर्सी बनाकर मुवक्किलों से बात करते दिख जाते हैं। एक टीन शेड कॉमन बार-रूम है। 

  • कमरों के बाहर की दीवार पर बोर्ड टंगा है जिस पर संबंधित कोर्ट का नाम लिखा है। दो कोर्ट ऊपर की मंजिल पर चलती है जहां पतली सी सीढ़ी से ऊपर जाना पड़ता है। अपराधी और पुलिस भी साथ-साथ ऊपर नहीं चढ़ पाते। 


एक याचिका दायर हुई तो पूरे राज्य की याद आई
राजगढ़ में कोर्ट परिसर में वारदात के बाद स्थानीय बार एसोसिएशन ने याचिका दायर की तो हाईकोर्ट ने पूरे राज्य की निचली अदालतों की सुध ली है। याचिका पर सुनवाई जारी है। 


किराए के 4 कमरे, 20 अदालतें


जोधपुर के पावटा पोलो में 4 किराये के कमरों में 20 कोर्ट चलती हैं। अकेली इसी गली में 8 कोर्ट हैं। यहां से गुजरने वाले को इस बात का पता या तो बाहर खड़ी गाड़ियों से लगता है या फिर तब, जब उसे खुद इन अदालतों के चक्कर लगाने पड़ें। मोहल्लावासी अतिक्रमण व गलियों के तंग होने की शिकायत करते रहते हैं, लेकिन समाधान हो भी तो कैसे?
 


भास्कर कॉल :  सारी याचिकाएं आपके पास ही पेंडिंग हैं मी लॉर्ड! फैसला दीजिए...


जी हां...ये न्याय की पीड़ा है। राज्य की निचली अदालतों की हालत सुधारने के लिए हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल तीन याचिकाएं लंबित हैं। इस खबर में दी गई जानकारी भी हमने उन्हीं याचिकाओं से ली गई है। राज्य की 1630 निचली अदालतों में 16 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं। यानी हर अदालत अगर एक दिन में कम से कम 1000 मामलों पर सुनवाई करे तो ये लंबित मामले निपट पाएंगे, लेकिन करें कैसे? न जज हैं न अपना भवन। न्याय का पूरा प्रशासनिक ढांचा भी खस्ताहाल है।


भास्कर की कॉल है कि इन खबराें में हम किसी मंत्री, अधिकारी का वर्जन नहीं लगाएंगे क्योंकि अदालत से जुड़ा यह फैसला खुद अदालत को करना है।